भास्कर न्यूज
Deepak Dhiman
February 08, 2008, चंडीगढ़. क्या आप यकीन करेंगे कि चंडीगढ़ के प्रशासक का कोई दफ्तर नहीं है और न ही उनके लिए कोई स्टाफ ही उपलब्ध है। शायद, नहीं। और वे लोग तो कतई नहीं जो 1999 से लेकर 2004 तक यूटी सेक्रेटेरिएट में प्रशासक के दफ्तर में जाकर उनसे वहीं मिलते रहे हैं।
राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट के तहत मांगी गई एक जानकारी देने से बचने के लिए चंडीगढ़ प्रशासन अब दलील दे रहा है कि प्रशासक के लिए न तो अलग से कोई दफ्तर है और न ही इस दफ्तर के लिए कोई स्टाफ। लिवलीन सिंह ने आरटीआई के तहत प्रशासक के दफ्तर से बुड़ैल जेल में बंद कैदियों की सजा माफी से संबंधित जानकारी मांगी थी।
जैकब और वर्मा नियमित तौर पर आते थे: ले.जन. (रिटा.) जेएफआर जैकब और चीफ जस्टिस (रिटायर्ड) ओपी वर्मा जब पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक थे, दोनों नियमित तौर पर यूटी सेक्रेटेरिएट में प्रशासक के दफ्तर में आते रहे।
रोड्रिग्स नहीं आते इस दफ्तर में:
अपने कार्यकाल के शुरूआती दिनों को छोड़कर चंडीगढ़ के मौजूदा प्रशासक जनरल (रिटायर्ड) एस. एफ. रोड्रिग्स इस दफ्तर में नहीं आए। कई बार तो इन्हें इस दफ्तर में आए महीनों बीत जाते हैं। उनका ज्यादातर कामकाज राजभवन ने ही चलता है, जहां आम लोगों का पहुंच पाना आसान नहीं। अब इस दफ्तर पर सील जड़ दी गई है।
"जब तक केन्द्र में भाजपा की सरकार थी तब तक चंडीगढ़ के प्रशासक नियमित तौर पर यूटी सेक्रेटेरिएट में अपने दफ्तर में बैठते रहे हैं और लोगों से मिलते रहे हैं। मैं खुद कई बार विभिन्न प्रतिनिधिमंडलों के साथ उन्हें यूटी सेक्रेटेरिएट में प्रशासक के दफ्तर में मिला हूं। अब यह कहना कि चंडीगढ़ प्रशासक का दफ्तर ही नहीं है, यह दर्शाता है कि प्रशासन और केन्द्र सरकार चंडीगढ़ के प्रति कितनी गंभीर है।"
सत्यपाल जैन, पूर्व सांसद चंडीगढ़